राग देवश्री

स्वरगंधार व धैवत वर्ज्य। मध्यम तीव्र, निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जातिऔढव - औढव
थाटकल्याण
वादी - संवादीपंचम - रिषभ
समयरात्रि का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थानरे; म्; प; नि१; - नि१; प; म्; रे;
मुख्य अंगरे म् प ; म् प नि१ प ; म् रे सा; ,नि१ ,प ,नि१ सा;
आरोह - अवरोहसा रे म् प नि१ सा' - सा' नि१ प म् रे सा;

राग देवश्री अपेक्षाकृत नया, मधुर और अप्रचलित राग है। इस राग में कोई वक्रता नही है। यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। राग मेघ मल्हार के स्वरों में यदि मध्यम शुद्ध की जगह मध्यम तीव्र का उपयोग किया जाए तो यह मिठास से भरपूर आकर्षक राग सामने आता है। यह स्वर संगतियाँ राग देवश्री का रूप दर्शाती हैं –

सा रे म् रे ; सा ,नि१ सा रे सा; रे म् प ; म् प नि१ प ; म् प नि१ म् प ; रे म् प ; म् प नि१ नि१ सा’; नि१ सा’ रे’ सा’; रे’ नि१ सा’ ; नि१ प म् प ; म् रे सा रे ; ,नि१ सा; ,प ,नि१ सा ;

राग देवश्री की बन्दिशें

ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।अधिक जानकारी के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें

1
बड़ा ख्याल - सुल्तान साहेब को सुमिर रे तनरंग
ताल - एकताल विलम्बित
प्रसंग - भक्ति रस
2
सादरा - राम भजो रे तनरंग
ताल - झपताल विलम्बित
प्रसंग - श्री राम
3
छोटा ख्याल - आज सखी नन्दलाल
ताल - एकताल द्रुत
प्रसंग - श्री कृष्ण - गोपियों से छेड़छाड़
4
छोटा ख्याल - जाने ना पीर पराई पिया
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
5
छोटा ख्याल - पथिकवा ले जा रे मोरा सन्देसवा
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
6
सरगम - रे म प नि सा नि प
ताल - एकताल द्रुत