स्वर | मध्यम तीव्र। शेष शुद्ध स्वर। |
जाति | सम्पूर्ण - सम्पूर्ण |
थाट | कल्याण |
वादी - संवादी | गंधार - निषाद |
समय | रात्रि का प्रथम प्रहर |
विश्रांति स्थान | सा; ग; नि; - सा'; नि; प; ग; |
मुख्य अंग | ,नि रे ग ; ,नि रे म् ग ; म् प ; म् ध प नि ध प म् रे ग रे ; ,नि रे ,ध ,नि सा; |
आरोह - अवरोह | ,नि रे सा ; ,नि रे ग म् प ध नि सा' - सा' नि ध प म् ग रे सा ; ,नि रे सा ; |
राग यमन का प्राचीन नाम कल्याण है। कालांतर में मुगल शासन के समय से इसे यमन कहा जाने लगा। इस राग के अवरोह में जब शुद्ध मध्यम का अल्प प्रयोग गंधार को वक्र करके किया जाता है, तब इस प्रकार दोनों मध्यम प्रयोग करने पर इसे यमन कल्याण कहते हैं।
इस राग का वादी स्वर गंधार, सप्तक के पूर्वांग में होने के कारण यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसलिये यमन का स्वर विस्तार सप्तक के पूर्वांग तथा मंद्र सप्तक में विशेष रूप से उभर कर आता है। आलाप और तानों का प्रारंभ अधिकतर निषाद से किया जाता है जैसे – ,नि रे ,नि ,ध सा ; ,नि रे ; ,नि ग ; ,नि म् ग; आदि। आरोह में पंचम का प्रयोग कुछ कम किया जाता है जैसे – म् ध प ; म् ध नि सा’, इससे राग का सौन्दर्य निखर आता है। आलाप में अवरोह में म् ग ; म् रे ग ; यह राग वाचक स्वर संगति है अतः म् ग रे सा; लेने की अपेक्षा म् रे ग रे सा; यह लेना राग की सुंदरता को निखारता है। तानों में म् ग रे सा निःसंकोच लिया जाता है।
इस राग की प्रक्रुति सौम्य और गंभीर है। कर्नाटक संगीत पद्धति में इस राग का नाम कल्याणी है। यह स्वर संगतियाँ राग यमन का रूप दर्शाती हैं –
,नि रे ; ,नि रे ग ; ,नि रे ,नि ग ; रे ग ; ,नि म् ग रे सा ; ,नि रे ग ; म् रे ग ; प ; म् ध प ; म् ध नि ; म् ध म् नि ; ग म् ग ; नि ध प ; रे ग ; ,नि रे सा ; ,ध ,नि ,ध सा ; सा ,ध ,नि रे ग ; ,नि रे ग ; ग रे ग ; ,नि रे ,नि ग ; ,नि रे ग म् रे म् ग ; ग रे म् ग ; म् प ; ग म् प रे सा ; ,नि रे सा ; ,नि रे ग म् प ; म् प म् प म् ध प म् प ; म् ध म् नि ; नि ध प ; म् ग ; ध नि म् ध नि ; नि ध प म् ग रे सा ; ,नि रे सा ;
राग यमन की बन्दिशें
ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं, और उनकी पुस्तक ‘आचार्य तनरंग की बन्दिशें भाग 1′ में प्रकाशित की गयीं हैं। इस पुस्तक में 31 रागों की कुल 389 बन्दिशें हैं। इस पुस्तक को खरीदने के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।
1 | शारदा स्तुति - जयति जय श्री शारदे माँ ताल - रूपक द्रुत प्रसंग - माँ सरस्वती | |
2 | शारदा स्तवन - ॐ नमस्ते शारदा देवी (आदि शंकराचार्य निर्मित) ताल - प्रसंग - माँ सरस्वती | |
3 | बड़ा ख्याल - भई सान्झ अब ताल - एकताल विलम्बित प्रसंग - सूर्यास्त समय | |
4 | बड़ा ख्याल - ए अजहून आये पिया ताल - एकताल विलम्बित प्रसंग - विरह रस | |
5 | सादरा - मोरा मन लागो री नटवर ताल - झपताल विलम्बित प्रसंग - श्रृंगार रस | |
6 | मध्य लय ख्याल - मोहनी मूरत मोरे मन भावे ताल - झपताल मध्य लय प्रसंग - श्रृंगार रस | |
7 | छोटा ख्याल - अब मोरा जियरा जलाओ ना ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - रूठना मनाना | |
8 | छोटा ख्याल - एरी आली मोहे रोकत कान्हा ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री कृष्ण - गोपियों से छेड़छाड़ | |
9 | छोटा ख्याल - हरवा गून्ध लाओ री ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
10 | छोटा ख्याल - नीकी बाँसुरी बजाई ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री कृष्ण - रास लीला | |
11 | छोटा ख्याल - ओछन के संग ना लाग रे ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - जीवन दर्शन | |
12 | छोटा ख्याल - सात सुरन गाओ अनुठे रंगीले राग ताल - एकताल द्रुत प्रसंग - सुर साधना | |
13 | छोटा ख्याल - शिव शंकर शंभो महादेव ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री शंकर शंभु | |
14 | छोटा ख्याल - मोरी गगरिया भरन ना देत अब ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री कृष्ण - गोपियों से छेड़छाड़ | |
15 | छोटा ख्याल - प्यारे प्यारे आएंगे आएंगे घरवा ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
16 | छोटा ख्याल - जा रे जा रे कगवा जा जा ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - विरह रस | |
17 | छोटा ख्याल - मेहरबाँ आये आये घरवा ताल - एकताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
18 | छोटा ख्याल - रतनारे नैन श्याम तिहारे ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री कृष्ण - महिमा वर्णन | |
19 | सरगम - सा नि ध प म प ग म प ताल - त्रिताल द्रुत |