स्वर | आरोह में रिषभ व धैवत वर्ज्य। निषाद कोमल, मध्यम तीव्र। शेष शुद्ध स्वर। |
जाति | औढव - सम्पूर्ण |
थाट | कर्नाटक संगीत पद्धति |
वादी - संवादी | षड्ज - पंचम |
समय | दिन का चतुर्थ प्रहर |
विश्रांति स्थान | ग; प; नि१; - ध; प; ग; रे; |
मुख्य अंग | ,नि१ सा ग म् ; प ध प ; म् ग रे सा ; रे ,नि१ सा ; म् ग रे सा ; |
आरोह - अवरोह | सा ग म् प नि१ सा' - सा' नि१ ध प म् ग रे सा; ,नि१ सा; |
राग वाचस्पती कर्नाटक संगीत से लिया गया राग है। राग मारू बिहाग में निषाद कोमल करने से राग वाचस्पती बनता है। राग चम्पाकली, इसका समप्राकृतिक राग है, जिसके अवरोह में गंधार प्रबल है परन्तु वाचस्पति में अवरोह में रिषभ प्रबल है। यह एक बहुत ही मधुर लेकिन अप्रचलित राग है।
राग वाचस्पती की बन्दिशें
ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।अधिक जानकारी के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें।
1 | बड़ा ख्याल - लाज ना आये तोहे निरदई ताल - एकताल विलम्बित प्रसंग - श्री कृष्ण - गोपियों से छेड़छाड़ | |
2 | सादरा - जियरा मोरा लागे ना तनिक ताल - झपताल विलम्बित प्रसंग - विरह रस | |
3 | छोटा ख्याल - आई सहेलरियाँ सज धज ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
4 | छोटा ख्याल - कोयलिया कुहू कुहू बोले ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - बसंत बहार | |
5 | छोटा ख्याल - मेहर की नजरिया करो ताल - एकताल द्रुत प्रसंग - गुरु वंदना | |
6 | छोटा ख्याल - मोरा मन नाही लागे रे ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - विरह रस | |
7 | सरगम - प म ग म प म ग रे सा ताल - त्रिताल द्रुत |