राग धानी

स्वररिषभ और धैवत वर्ज्य। गंधार और निषाद कोमल। शेष शुद्ध स्वर।
जातिऔढव - औढव
थाटकाफी
वादी - संवादीगंधार - निषाद
समयसर्वकालिक, अन्य मतानुसार दिन का तीसरा प्रहर
विश्रांति स्थानग१; नि१ ;
मुख्य अंग,नि१ सा ग१ ; सा ग१ म प ग१ ; नि१ प ग१ सा ;
आरोह - अवरोहसा ग१ म प नि१ सा' - सा' नि१ प म ग१ सा ;

राग धानी एक चंचल प्रकृति का राग है जिसमें ख्याल और अति विलम्बित रचनाएँ नहीं गयीं जातीं। इस राग में चपलता है इसलिए इसमें मध्य लय अथवा द्रुत लय की श्रंगारिक अथवा भक्ति रस की बंदिशें ही अधिक उपयुक्त लगती हैं। इस राग को शूद्र राग की श्रेणी में रखा गया है।

इस राग में कोमल गंधार एक अत्यंत प्रभावशाली और न्यास का स्वर है जिसको केंद्र में रख कर इस राग को सजाया जाता है। कोमल निषाद भी न्यास का स्वर है। कुछ समय पूर्व तक रिषभ को अवरोह में वर्ज्य न करते हुए इस राग को औढव-षाढव जाति का माना जाता था, परन्तु आधुनिक काल में रिषभ को वर्ज्य करके राग धानी को औढव-औढव जाति का माना गया है। हालांकि कुछ गुणीजन कभी कभी शुद्ध रिषभ का स्पर्श भी लेना स्वीकार करते हैं।

राग धानी का स्वरुप इस प्रकार है – सा ,नि१ ,प ; ,नि१ सा ग१ ; ग१ सा ग१ ,नि१ सा ; सा ग१ म ग१ ; सा ग१ म प ग१ ; ग१ म नि१ प ग१ म ग१ ; म प ग१ म ग सा; ग१ म प सा’ नि१ सा’ ; नि१ सा’ ग१’ सा’ ; ग१’ नि१ सा’ ; प सा’ प नि१ प ; नि१ प ग१ म ग१ ; ग१ म प ग१ सा ; ग१ ,नि१ सा ग१ सा;

राग धानी की बन्दिशें

ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।अधिक जानकारी के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें

1
मध्य लय ख्याल - रतियाँ कटत मोरी
ताल - झपताल मध्य लय
प्रसंग - विरह रस
2
छोटा ख्याल - बालम आये परदेस गवन कर
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - श्रृंगार रस
3
सरगम - ग सा नि सा ग
ताल - त्रिताल द्रुत