स्वर | मध्यम, निषाद वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर। |
जाति | औढव - औढव |
थाट | कल्याण |
वादी - संवादी | गंधार - धैवत |
समय | रात्रि का प्रथम प्रहर |
विश्रांति स्थान | सा; रे; ग; प; - प; ग; रे; सा; |
मुख्य अंग | ग रे ग; प ग; ध प; सा' ध प ग; प ग रे ग; ग रे सा; |
आरोह - अवरोह | सा रे ग प ध सा' - सा' ध प ग रे सा रे ,ध सा; |
राग भूपाली, राग भूप के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह पूर्वांग प्रधान राग है। इसका विस्तार तथा चलन अधिकतर मध्य सप्तक के पूर्वांग व मन्द्र सप्तक में किया जाता है। यह चंद्र प्रकाश के समान शांत स्निग्ध वातावरण पैदा करने वाला मधुर राग है। जिसका प्रभाव वातावरण में बहुत ही जल्दी घुल जाता है। रात्रि के रागों में राग भूपाली सौम्य है। शांत रस प्रधान होने के कारण इसके गायन से वातावरण गंभीर व उदात्त बन जाता है। राग भूपाली कल्याण थाट का राग है।
इस राग को गाते समय स्वरों पर न्यास का विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि प ध प ; प ध ग प इस तरह से धैवत पर अधिक जोर दिया गया तो राग का स्वरूप बदल जाता है और यह राग देशकार हो जाता है। इसी तरह षडज से धैवत और पंचम से गंधार मींड में लेते समय यदि क्रमशः निषाद और मध्यम स्वरों का स्पर्श होने या कण लगने से भी भूपाली का स्वरूप बदल जाता है और यह राग शुद्ध कल्याण दिखने लगता है। अतः भूपाली को इन रागों से बचाते हुए गाना चाहिए। राग भूपाली में गंधार-धैवत संगती का एक विशेष महत्त्व है और रिषभ न्यास का स्वर है।
इसे कर्नाटक संगीत में राग मोहन कहा जाता है। यह एक पूर्वांग प्रधान राग है और इसे मध्य और मन्द्र सप्तकों में गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग भूपाली का रूप दर्शाती हैं –
सा ; सा ,ध सा रे ग ; रे ग सा रे ,ध सा ; सा रे ग प ; प ग रे ग ; रे प ग ; ग सा रे ; रे ,ध सा ; ग रे ग ; प ग ; प ध प प ; ध प ; ग प रे ग रे सा ,ध सा ; सा रे ग रे ग प ध सा’ ; प ध प सा’ ; सा’ सा’ ; रे’ सा’ ध सा’ ; ध सा’ रे’ ग’ रे’ सा’ ; ध सा’ ध प ग रे ग ; प रे ग रे सा ; रे ,ध सा ;
राग भूपाली की बन्दिशें
ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं, और उनकी पुस्तक ‘आचार्य तनरंग की बन्दिशें भाग 1′ में प्रकाशित की गयीं हैं। इस पुस्तक में 31 रागों की कुल 389 बन्दिशें हैं। इस पुस्तक को खरीदने के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं।
1 | बडा ख्याल - एरी आज रंग ताल - एकताल विलम्बित प्रसंग - श्रृंगार रस | |
2 | बडा ख्याल - दीपावली आई ताल - झपताल मध्य लय प्रसंग - दीपावली | |
3 | सादरा - सगुन बिचारो हे बमना ताल - झपताल विलम्बित प्रसंग - विरह रस | |
4 | छोटा ख्याल - मधुर सुर बंसी ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री कृष्ण - रास लीला | |
5 | छोटा ख्याल - सेहरा गून्ध लाओ ताल - एकताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
6 | छोटा ख्याल - काहे करत बरजोरी ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - रूठना मनाना | |
7 | छोटा ख्याल - बार बार समझाय रह्यो मन ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री राम, जीवन दर्शन | |
8 | छोटा ख्याल - जयति विजय कमला भवानी ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - माँ दुर्गा | |
9 | छोटा ख्याल - जीवन अब थोडो रहो थोडो ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्री राम, जीवन दर्शन | |
10 | छोटा ख्याल - कमला चरण पूजो रे ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - दीपावली | |
11 | छोटा ख्याल - मालनिया गूंध लाओ री ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - श्रृंगार रस | |
12 | छोटा ख्याल - सुर साधे सुर लोक पावे ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - सुर साधना | |
13 | छोटा ख्याल - उमंग मन में जागी ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - दीपावली | |
14 | तराना - तदारे दानी दीम तनन देरेना ताल - त्रिताल द्रुत प्रसंग - नृत्य के लिए उपयोगी | |
15 | सरगम - सा ध सा रे प ग ताल - त्रिताल द्रुत |
राग भूपाली – आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’
बडा ख्याल: दीपावली आई ताल – झपताल मध्य लय
छोटा ख्याल: जय जय देव हरे ताल – त्रिताल