राग हेमंत

स्वरआरोह में रिषभ व पंचम वर्ज्य। शेष शुद्ध स्वर।
जातिऔढव - संपूर्ण
थाटबिलावल
वादी - संवादीमध्यम - षड्ज
समयरात्रि का दूसरा प्रहर
विश्रांति स्थानसा; ग; म; ध; नि;
मुख्य अंगग म ध नि ध ; म (प)म ; नि ध (प)म ; ग म ग रे सा ; ग म ध प म ग रे सा;
आरोह - अवरोहसा ग म ध नि सा' - सा' नि ध प म ग रे सा;

राग हेमंत बहुत ही मधुर राग है। राग कौशिक ध्वनि के अवरोह में जब पंचम और रिषभ स्वरों का भी उपयोग किया जाता है, तब राग हेमंत की उत्पत्ति होती है। इस राग में रिषभ को सीधा लगाया जाता है जैसे – ग रे सा परन्तु पंचम स्वर का उपयोग अल्प है और इसे मींड या कण स्वर के रूप में प्रयोग किया जाता है जैसे – ध (प)म या म (प)म

यह राग स्निग्ध और गंभीर वातावरण पैदा करने वाला राग है, जिसे तीनो सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह स्वर संगतियाँ राग हेमंत का रूप दर्शाती हैं –

सा ग म ध ; प म ; ग रे सा ; ,नि ,ध ; ,म ,ध ,नि सा ; म (प)म ; ग म ध नि ; म ध नि सा’ ; सा’ रे’ सा’ नि ध ; नि सा’ ध प म ; म प म म ग म ग रे सा ;

राग हेमंत की बन्दिशें

ये बन्दिशें आचार्य विश्वनाथ राव रिंगे ‘तनरंग’ द्वारा रचित हैं। निम्न सभी बंदिशों के गायक श्री प्रकाश विश्वनाथ रिंगे हैं। अधिक जानकारी के लिये कृपया हमें सम्पर्क करें

1
छोटा ख्याल - बिसर गए री सजनवा
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
2
छोटा ख्याल - छाड़ चले निरमोही मोहे
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
3
छोटा ख्याल - कलना परे मैको
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
4
छोटा ख्याल - तुमसन मोरी लगन लागी है
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
5
छोटा ख्याल - सगरी रतियाँ तरपत बीती
ताल - त्रिताल द्रुत
प्रसंग - विरह रस
6
सरगम - ग म ध नि सा नि ध
ताल - त्रिताल द्रुत